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Saturday, September 26, 2015

आज फिर

आज फिर ज़िन्दगी वही मोड़ पर लेकर आई है ,
फर्क सिर्फ इतना है वो तू नहीं तेरी परछाई है.

आज फिर याद आ रहा है वो लम्हा,
जब तू जा रही थी मुझसे दूर और में देखता रहा.

आज फिर तेरी वो मुश्कुराहट गूंज रही है मेरे कानो में,
जिसको याद करके मेरे होंठ हलकी सी मुश्कुराहट से महक उठते थे.

आज फिर लग रहा है समय खेल रहा है मेरे साथ,
गुज़र रहा है हर एक लम्हा फिर से जो मैंने बिताया था तेरे साथ.

इत्तेफ़ाक़ ये है के आज फिर से दिल कह रहा है,
रोक लू तेरी परछाई को दूर जाने से और भर लू तुझे बहो मैं.

आज भी वाही सवाल पूछ रहा हु ज़िन्दगी से,
कब तू मेरे सामने आएगी और में वो लम्हे को वही रोक कर मौत की बाँहों में चला जाऊ.

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