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Saturday, September 26, 2015

ज़िन्दगी

हर बार वो मेरे पास आकर मुझसे कुछ कहती थी,
ख़ुशी हो या गम  हमेशा मुश्कुराती रहती थी ,
कभी दुसरो की ख़ुशी में अपने गम भुलाकर झूम लेती थि.

चाहती थी नसीब से कुछ और पर कुछ और ही वो पा लेती थी,
अंधेरो से घिरे इस कमरे में आशाओं के दीप जला लेती थी ,
कोशिशें तो बहोत की उसने आशा की किरण पाने की ,
पर  हर बार उसके पास जाते ही वो किरने कहीं खो जाती थी.

खुशबू के खो जाने के बाद भी बागीचे को महकाती थी ,
किसी के दूर जाने के बाद भी उसकी यादों को सजाती थी ,
चाहत तो उसे कभी नहीं मिली फिर भी वो सबको चाहती थी ,
टूटे हुए इस दिल को हमेशा प्यार से सहलाती थी।

हर एक हार के बाद भी हमेशा वो गिर कर उठ जाती थी,
पुरानी मात को भुलाकर हमेशा चुनौतीयो को अपनाती थी ,
पूछना तो हमने बहोत चाहा उसका नाम कभी नहीं बतलाती थी ,
एकबार खुद से ही उसने बताया के मौत से पहले मैं ज़िंदगी कहलाती थी. 

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