तुम जा रहे हो दूर तो एक खलिश सी क्यूँ है,
वैसे तो मुझे पता है तुम्हे नहीं है महोब्बत मुझसे,
फिर भी इस नादान दिल को तुम्हे पाने की ख्वाहिस सी क्यूँ है.
यूँ तो ए ज़िन्दगी बहोत कुछ दिया है तुने हमें,
पर हमेशा खलती एक कमी सी क्यूँ है,
फांसले तो बहोत देखे है हमने भी दुनिया में,
फिर भी हमारे बिच के इस चार कदमो में इतनी दुरी सी क्यों है.
चारो जहाँ में है खुशियों का आलम,
बस एक हमारे जहाँ में ऐसी मायूसी क्यूँ है,
सच बता ए खुदा अगर तू है इस दिल में बसता,
तो हमारी हालत ऐसी फकीर सी क्यूँ है.
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